आज हम बात करेंगे भारत के सैन्य इतिहास के दो महत्वपूर्ण अध्यायों की – 1971 का भारत-पाक युद्ध और हाल ही में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की. ये दोनों घटनाएं भारत की सुरक्षा रणनीति और पाकिस्तान के प्रति उसके बदलते रुख को दर्शाती हैं.

1971 का भारत-पाक युद्ध: एक ऐतिहासिक विजय
1971 का युद्ध भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है. यह युद्ध पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के खिलाफ लड़ा गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया.
प्रमुख बातें:
- पृष्ठभूमि: पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली आबादी पर पाकिस्तानी सेना का दमन और मानवाधिकारों का हनन.
- भारत की भूमिका: भारत ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को सैन्य और नैतिक समर्थन दिया.
- परिणाम: भारतीय सेना ने निर्णायक जीत हासिल की. 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया. 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया, जो इतिहास का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था.
- उद्देश्य: पूर्वी पाकिस्तान को अत्याचारों से मुक्ति दिलाना और क्षेत्र में स्थिरता लाना.
यह युद्ध भारत की सैन्य क्षमता, कूटनीतिक कौशल और मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण था.
ऑपरेशन सिंदूर’:
आतंकवाद के खिलाफ भारत का नया अंदाज़
हाल ही में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने भारत की सुरक्षा रणनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है. यह ऑपरेशन 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में किया गया, जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई थी.

प्रमुख बातें:
- पृष्ठभूमि: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत का सीधा और कठोर जवाब.
- उद्देश्य: पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoJK) में जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों के ठिकानों को निशाना बनाना और उन्हें नष्ट करना.
कार्रवाई:
भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के समन्वित प्रयासों से 7 मई 2025 को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ लॉन्च किया गया. इसमें उच्च-परिशुद्धता वाले हथियारों का इस्तेमाल किया गया, जिससे आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए गए. यह 1971 के बाद पहली बार था जब भारत ने पाकिस्तान के निर्विवादित क्षेत्र (पंजाब प्रांत) में भी अंदर तक हमले किए.
विशेषताएं:
इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना की महिला पायलटों ने भी सक्रिय युद्धक भूमिका निभाई, जो भारतीय सशस्त्र बलों में लैंगिक समावेश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है. ऑपरेशन की सफलता और इसमें दिखाई गई सटीकता और संयम ने दुनिया भर में भारत के सैन्य कौशल का प्रदर्शन किया.
संदेश:
‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब आतंकी हमलों को चुपचाप बर्दाश्त नहीं करेगा और सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करेगा, चाहे आतंकी कहीं भी छिपे हों
1971 बनाम ऑपरेशन सिंदूर: क्या हैं अंतर?
दोनों घटनाओं में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं:

पैमाना: 1971 एक पूर्ण युद्ध था, जिसमें बड़े पैमाने पर सैन्य बलों की तैनाती और क्षेत्र पर नियंत्रण का लक्ष्य था. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक सीमित और लक्षित ऑपरेशन था, जिसका उद्देश्य आतंकी ठिकानों को नष्ट करना था.
उद्देश्य: 1971 में एक नए राष्ट्र (बांग्लादेश) का गठन हुआ, जबकि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का लक्ष्य आतंकवाद के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना और पाकिस्तान को यह संदेश देना था कि भारत अपनी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा.
प्रौद्योगिकी: 1971 में पारंपरिक हथियारों का उपयोग अधिक था, जबकि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में आधुनिक उच्च-परिशुद्धता वाले हथियारों और ड्रोन का इस्तेमाल हुआ, जिसने युद्ध के स्वरूप को बदल दिया है.
निष्कर्ष:
1971 का युद्ध भारत की रक्षा क्षमताओं और उसकी मजबूत इच्छाशक्ति का प्रतीक था. वहीं, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने दिखाया कि भारत अब बदल गया है. वह अब सिर्फ बचाव की मुद्रा में नहीं रहता, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ सक्रिय और निर्णायक कार्रवाई करने में सक्षम है. यह भारत की “नया मोदी सिद्धांत” है, जो पाकिस्तान और दुनिया को एक स्पष्ट संदेश देता है: भारत अपनी सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और आतंकवाद को उसकी जड़ से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है.
यह निश्चित रूप से भारत की सुरक्षा रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जो भविष्य में क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मायने रखेगा.
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