गोवा मुक्ति संग्राम में डॉ. लोहिया की भूमिका: पुर्तगालियों से आज़ादी की अलख

Spread the love

जब भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, तब भी देश का एक हिस्सा – गोवा, पुर्तगालियों की गुलामी में था। लेकिन गोवा की आज़ादी की अलख सबसे पहले जिस क्रांतिकारी नेता ने जगाई, वह थे डॉ. राम मनोहर लोहिया। उन्होंने गोवा की धरती पर पहला बड़ा विरोध प्रदर्शन कर पुर्तगाली शासन के खिलाफ जनजागरण शुरू किया। यह आंदोलन आगे चलकर गोवा मुक्ति संग्राम का आधार बना।

WhatsApp Image 2025 06 23 at 6.55.37 PM

डॉ. लोहिया का गोवा आगमन

18 जून 1946 को डॉ. लोहिया ने गोवा में कदम रखा। उस समय गोवा पुर्तगाल के अधीन था और वहां किसी भी प्रकार के राजनीतिक आंदोलन पर पूरी तरह रोक थी। लोहिया जी ने मडगांव शहर में एक जनसभा को संबोधित किया, जो तत्कालीन पुर्तगाली कानूनों के खिलाफ एक साहसी कदम था। यह गोवा की जनता के लिए एक प्रेरणा बन गया।


पुर्तगाली शासन के खिलाफ बिगुल

डॉ. लोहिया ने पुर्तगालियों के दमनकारी शासन की खुलकर आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत की आज़ादी अधूरी है जब तक गोवा, दमन और दीव जैसे क्षेत्र विदेशी हुकूमत में हैं। उन्होंने न सिर्फ भाषण दिए, बल्कि सत्याग्रह का मार्ग अपनाया और गोवा की जनता को भी आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित किया।


जनांदोलन की शुरुआत

लोहिया जी के नेतृत्व में हजारों लोगों ने पुर्तगाली शासन के खिलाफ आवाज़ बुलंद की। यह पहला मौका था जब गोवा में इतनी बड़ी संख्या में लोग खुलेआम सड़कों पर उतरे। पुर्तगाल सरकार ने लोहिया को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन तब तक गोवा की जनता जाग चुकी थी। यह आंदोलन गोवा मुक्ति संग्राम की नींव बन गया।


18 जून को क्यों मनाया जाता है ‘गोवा क्रांति दिवस’?

डॉ. लोहिया द्वारा 18 जून 1946 को गोवा में दिए गए भाषण और उनके नेतृत्व में हुए जनांदोलन को याद करते हुए हर साल इस दिन को ‘गोवा क्रांति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उन संघर्षों की याद दिलाता है जिसने गोवा को 1961 में पुर्तगाली शासन से मुक्त कराने की राह प्रशस्त की।


लोहिया का अमिट योगदान

डॉ. राम मनोहर लोहिया न सिर्फ एक समाजवादी विचारक थे, बल्कि उन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गोवा मुक्ति संग्राम में उनका योगदान एक चिंगारी की तरह था जिसने पूरे आंदोलन को आग में बदल दिया।


निष्कर्ष:
गोवा की आज़ादी सिर्फ सैनिक कार्रवाई से नहीं मिली, बल्कि डॉ. लोहिया जैसे नेताओं के साहसी प्रयासों और जनता के जागरण से संभव हो सकी। आज जब हम आज़ाद गोवा की बात करते हैं, तो हमें डॉ. लोहिया के उस ऐतिहासिक कदम को याद रखना चाहिए जिसने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने की पहली आवाज़ बुलंद की।



Spread the love

Leave a Comment