समुद्रयान’ भारत का पहला मानव युक्त गहरा महासागर मिशन है, जो देश के लिए एक महत्वाकांक्षी और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पहल है। यह भारत को उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल करेगा जिनके पास गहरे समुद्र में मानव युक्त अन्वेषण की क्षमता है।

‘समुद्रयान’ से जुड़े मुख्य बिंदु दिए गए हैं:
- लक्ष्य: इस मिशन का मुख्य लक्ष्य गहरे महासागरों में वैज्ञानिक अन्वेषण करना, समुद्री संसाधनों का पता लगाना और नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) को बढ़ावा देना है।
- लॉन्च की योजना: ‘समुद्रयान’ मिशन को 2026 तक लॉन्च किए जाने की उम्मीद है।
- प्रमुख घटक: इस मिशन का एक महत्वपूर्ण घटक ‘मत्स्य 6000’ नामक एक स्वदेशी रूप से विकसित मानव युक्त पनडुब्बी वाहन है।
- मत्स्य 6000 की क्षमता:
- यह पनडुब्बी 6,000 मीटर (6 किलोमीटर) की गहराई तक समुद्र में जाने में सक्षम होगी।
- यह एक बार में तीन वैज्ञानिकों/व्यक्तियों को ले जा सकती है।
- इसमें सामान्य संचालन के लिए 12 घंटे और आपातकालीन स्थिति में 96 घंटे तक की सहनशक्ति (endurance) होगी।
- यह टाइटेनियम से बनी है, जो इसे अत्यधिक दबाव और तापमान को सहन करने की क्षमता प्रदान करता है।
उद्देश्य:
- गहरे समुद्र में जैविक और अजैविक संसाधनों (जैसे बहुधात्विक गांठें – polymetallic nodules) की खोज करना।
- महासागर की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन करना।
- गहरे समुद्र में जाने वाली प्रौद्योगिकियों का विकास करना, जैसे पानी के नीचे के वाहन और रोबोटिक्स।
- महासागरीय जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास करना।
- समुद्री जीव विज्ञान अनुसंधान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन स्थापित करना।
- नोडल एजेंसी: इस मिशन का नेतृत्व पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) के तहत राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT), चेन्नई द्वारा किया जा रहा है।
- ब्लू इकोनॉमी का समर्थन: यह मिशन भारत सरकार की ‘ब्लू इकोनॉमी’ नीति का एक अभिन्न अंग है, जिसका उद्देश्य समुद्री संसाधनों का सतत उपयोग करके आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति: इस मिशन की सफलता भारत को अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान और चीन जैसे उन गिने-चुने देशों के “एलीट क्लब” में शामिल कर देगी, जिनके पास गहरे समुद्र में मानव युक्त अन्वेषण की विशिष्ट क्षमताएं हैं।
संक्षेप में
‘समुद्रयान’ भारत के लिए गहरे समुद्र के रहस्यों को खोलने और महासागरीय संसाधनों के सतत उपयोग के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को विकसित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है